फसल चक्र सिद्धांत तथा लाभ

फसल चक्र सिद्धांत तथा लाभ

Drx. Ravi Varma

फसल चक्र सिद्धांत तथा लाभ

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प्राचीन काल से ही मनुष्य अपने पोषण के लिए विभिन्न प्रकार की फसलें उगाता आ रहा है । ये उगाई जाने वाली फसलें मौसम के अनुसार भिन्न - भिन्न होती हैं । शुरू से ही किसी खेत में एक ही फसल मउगा कर फसलें बदल - बदल कर उगाने की परंपरा चली आ रही है । क्योंकि किसी खेत में लगातार एक ही फसल उगाने के कारण कम उपज प्राप्त होती तथा भूमि की उर्वरक शक्ति खराब होती है । सबसे लोकप्रिय फसल उत्पादक प्रणाली भान - गेहूं में उपजाऊ भूमि का क्षरण , जीवांश की मात्रा में कमी , भूमि से लाभदायक सूक्ष्म जीवों की कमी , मित्र जीवों की संख्या में कमी , कीटनाशकों का अधिक प्रयोग आदि हानियां होती हैं । इस उत्पादकता को बनाए रखने के लिए फसल चक्र के विभिन्न सिद्धांतों को अपनाकर इन विनाशकारी अनुभवों से बचा जा सकता है । विभिन्न फसलों को किसी निश्चित क्षेत्र पर एक निश्चित्त क्रम से , किसी निश्चित समय में बोने को फसल चक्र कहते हैं । इसका उद्देश्य पौधों के लिए जरूरी तत्वों का सदुपयोग तथा भूमि की भौतिक , रासायनिक तथा जैविक दशाओं में संतुलन स्थापित करना है । फसल चक्कर से मृदा उर्वरक शक्ति बढ़ती है , भूमि में कार्बन नाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि होती है । भूमि की संरचना में सुधार होता है । मृदा क्षरण की रोकथाम होती है भूमि में विषैले पदार्थ इकट्ठे नहीं हो पाते । उर्वरक अवशेषों का पूर्ण उपयोग हो जाता है । 

फसल चक्र के सिद्धांत -:

 फसल चक के निर्धारण में कुछ मूलभूत सिद्धांतों को ध्यान में रखना जरूरी होता है । जैसे : 


1. अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसलों का उत्पादन । 

2 अधिक निराई - गुड़ाई चाहने वाली फसल के बाद कम निराई - गुड़ाई चाहने वाली फसल । 

3. अधिक पानी चाहने वाली फसल के बाद कम पानी चाहने वाली फसल उगाना । 

4. अनाज वाली फसलों के बाद दलहनी फसलों का उत्पादन या दलहनी फसलों का समावेश 

5. अधिक मात्रा में पोषक तत्व शोषण करने वाली फसल के बाद खेत को परती छोड़ना । 

6. फसलों का समावेश स्थानीय बाजार की मांग के अनुरूप होना चाहिए । 

7. एक ही नाशी जीवों से प्रभावित होने वाली फसलों को लगातार नहीं उगाना चाहिए 

8. फसल का समावेश जलवायु तथा किसान की आर्थिक दक्षता के अनुरूप होना चाहिए । 

9. उपली जड़ वाली फसल के बाद गहरी जड़ वाली फसल को उगाना चाहिए । 

फसल चक्र मे लाभ : 


फसल चक्र से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है । भूमि में कार्बन - लाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि होती है । फसलों को काटों , बीमारियों व खरपतवारों से रोकथाम होती है । फसल चक्र से निम्नलिखित लाभ होते हैं : 

1. गहरी तथा उथली जड़ वाली फसलों बोने से फसलों की जड़ें गहराई तथा फैलाथ विभिन्न प्रकार की होती है जिससे पौषक तत्वों का खर्च विभिन्न गहराइयों पर समान होता है ।

 2. पौधे मुख्य पोषक तत्व नाइट्रोजन फास्फोर्स तथा पोटाश व अन्य पोषक तत्व भिन्न भिन्न मात्राओं में लेते हैं फसल चक्र से इनका आपसी संतुलन बना रहता है 

3. फसल चक्र में एक ही फसल लगातार बोने से उनके हानिकारक कौड़े , रोग तथा खरपतवार उसी खेत में नहीं बने रहते हैं ।


4. निराई - गुड़ाई चाहने वाली फसलें बोने से भूमि में जैव पदार्थों की कमी हो जाती है , इनकी पूर्ति दलहन वर्ग की फसलें तथा हरी खाद के प्रयोग से पूरी हो जाती है । 

5. दलहनी वर्ग की फसलों को जैसे सनोप , बैंचा , मंग इत्यादि भूमि में उगा कर वर्ष में एक बार जोत देने से न केवल जैविक अंश को बढ़ोतरी होती है , बल्कि फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति भी हो जाती है , क्योंकि इनकी जड़ में छोटी - छोटी गांवों में नाइट्रोजन इकट्ठा करने वाले जीवाणु होते हैं । 

6. निराई - गुड़ाई चाहने वाली फसलों के बोने से पास - फूंस की सफाई स्वयं हो जाती है । 

7. फसलें जड़ों से कुछ विषैले पदार्थों भूमि में छोड़ती है एक ही फसल बोने से भूमि में विपले पदार्थ अधिक मात्रा में एकत्र होने के कारण हानि पहुंचाते हैं । 

8. फसल चक्र अपनाने से भूमि की जैविक , रासायनिक तथा भौतिक दशाओं में संतुलन आता है और फसलों की गुणवत्ता तथा पोषकता भरपूर मात्रा में मिलती है ।

 9. समय का सदुपयोग इससे कृषि कार्य उत्तम बंग से होता है । खेत एवं किसान व्यर्थ खाली नहीं रहते । 

10. उचित सस्य चक्र से वर्षों के जल से भूमि का कटाव रूक जाता है तथा खाद्य पदार्थ बहने से बच जाते हैं । 

   आज तो केवल उत्पाद वृद्धि रुक गई है बल्कि एक निश्चित मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए पहले की अपेक्षा न बहुत अधिक मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना पड़ रहा है क्योंकि भूमि में उर्वरक क्षमता उपयोग का हास बढ़ गया है । इन सब विनाशकारी अनुभवों से बचने के लिए फसल चक्र , फसल सपनता के सिद्धांतों को दृष्टिगत रखते हुए फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश जरूरी हो गया है क्योंकि दलहनी फसलों से एक टिकाऊ फसल उत्पादन प्रक्रिया विकसित होती है । फसल चक्र किसानों के लिए अत्यंत लाभदायक होता



























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