धान की खेती

धान की खेती

Drx. Ravi Varma

धान की उन्नत खेती


धान के लिए खेत की तैयारी-:


गर्मी में समय मिलने पर खेत की एक बार अच्छी तरह से जुताई करले तथा गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद 20 से 25 गाड़ी प्रति हैक्टेयर खेतो में डाल लें । इससे खेतो की उर्वरा शक्ति बरक़रार रहती है |


अगर खेतों में सन की हरी खाद की फसल लगाई गई हो तो उन खेतों में रोपा लगाने के 15 दिन पहले सन की फसल को जुताई ( 6 inch. की गहराई तक) कर ले और इसे मिट्टी में सड़ने के लिये छोड़ दें, क्योंकि हरी खाद द्वारा स्थाई रूप से मिट्टी की उर्वराशक्ति को बढ़ा सकते है।
रोपा लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह से मचाई कर लें, पाटा चलाने के पहले P.S.B कल्चर 500 gm मात्रा को 100 Kg गोबर की भुरभुरी खाद में अच्छी तरह मिलाकर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें तथा नत्रजन की आधी मात्रा, स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा छिड़क कर मिट्टी में मिला दें।
धान की रोपाई



धान की रोपाई पर ध्यान देने योग्य बाते-:

धान की रोपाई के लिए पौध उखाड़ने से 1 दिन पहले नर्सरी के खेत में पानी चला दे ताकि जमीं पर नमी बनी रहे और पौध उखाड़ते समय ध्यान दे की पौधों कि जड़ों को धोते समय नुकसान न होने दे तथा पौधों को काफी निचे से पकड़कर उखाड़े |


धान की रोपाई में पौधे की उम्र सामान्यत : 25 – 30 दिन पुराना हो तथा पौधे में 5 – 6 पत्तियां निकल जाए तो यह रोपाई के सही होता है, और यदि पौधे की उम्र ज्यादा होगी तो पौधे में कल्ले कम फूटते है जिससे उपज में कमी आती है|
रोपाई करने से पहले खेत को अच्छी तरह से समतल कर के मेंड़ बना ले,
धान की फसल को खाद्यान फसल में सबसे अधिक पानी की आवस्य्क्ता होती है, धन को रोपाई के एक सप्ताह बाद कल्ले बनते समय, बाल निकलते समय, फूल बनते समय, और दाना बनते समय खेतो में पानी अति आवश्यक है|
परिक्षण के आधार पर यह पाया गया है की धन की फसल अच्छी उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है, बल्कि इसके लिए खेतो में से सतह पर से एक बार पानी निकल लेना चाहिए, और इसके 2 दिनों बाद उसमे 5 से 7 सेंटीमीटर पानी वापस से भर देना चाहिए |
यदि वर्षा की कमी के कारण फसलों में पानी की कमी दिखाई दे, तो सिचाई अवश्य करे | खेत में पानी रहने से फास्फोरस, मैगनीज , और लोहा तत्वों की उपलब्धता बड़ जाती है, साथ ही हमरे खेत में जो विभिन्न प्रकार के खरपतवार होते है वो भी अधिक पानी की अवस्था में नहीं उग पाते है |

धान की बीमारियाँ एवम् उनको रोकने के उपाए-:


किसी भी फसल की उत्पादन को कम करने का एक बहोत बड़ा कारण उसमे लगने वाले रोग होते है| रोग उत्पादन को कम ही नहीं करते अपितु उत्पादित फसल की गुणवत्ता को भी खासा हानिपहुचाते है| जिससे फसल का बाजार मूल्य भी कम हो जाता है| रोगों की प्रवृति इस प्रकार होती है कि यह फसल केबीजोंव उसके अवशेषों के जरिये पीढ़ी दर पीढ़ी किसी न किसी अवस्था में जीवित रहते है, इसलिए फसलो में लगने वाले रोगों को बारे में विशेष जानकारी का होना बहोत आवश्यक होता है, चूँकि हमारे देश का मुख्य भोजन चावल है इसलिए धान की फसल में लगने वाले रोगों तथा उनके नियंत्रण के बारे में हमारा जानना बहोत आवश्यक हो जाता है |

धान के खेत में दवा का छिड़काव



धान की फसल के रोग, किट एवं उनका नियंत्रण -:

झुलसा रोग ब्लास्ट : –

पत्तियों पर इस रोग के प्रारंभिक धब्बेबुवाई के 15 दिन बाद से धान के पकने तक देखे जा सकते है | यह एक फफूंद जनित रोग है| इस रोग के रोगकारक फफूंद का नाम पारीकुलेरिया ग्रीसिया है रोग की प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्तियों पर हल्के बैगनी रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते है, जो धीरे धीरे बढ़कर आँख केसमानबिच में चौड़े व किनारे में पर संकरे कत्थई रंग के दिखने लगतेहै | इन धब्बो के बीच कारंग हल्के भूरे रंग (राख़) जैसा होजाता है | तने की गठानो पर भी इस रोग का आक्रमण होता है, जिससे वे काली हो जाती है तथा पौधे इन ग्रषित गठानो से टूट जाते है | इस रोग के कारण दानो का भराव भी पूरा नहीं हो पता है| रोग के प्रकोप से धान की बाली पर सडन पैदा हो जाती है तथा उपज प्रभावित होती है क्योंकि बाली टूट कर गिर जाती है |

ब्लास्ट (Blast) या झोंका रोग –:

यह रोग सफ़ेद फफूंद से फैलता है और पौधे के सभी भाग इस बीमारी से प्रभावित होते है वृद्धि अवस्था में यह रोग पत्तियों पर धब्बे के रूप में दिखाई देता है इनके धब्बों के किनारे कत्थई रंग के तथा बिच वाला भाग रख के रंग का होता है रोग को तेजी से आक्रमण होने वाली का आधार भी ग्रसित भी हो जाता है फलस्वरूप वाली आधार से मुड़कर लटक जाती है : फलत दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पाता है |

झुलसा रोग की रोकथाम कैसे करें:-

रोग रोधी किस्मे जैसे दुर्गेश्वरी, इंदिरा राजेश्वरी, कर्मा मासुरी, व आई.आर.-64,8,24, जया, वी.एल. धान-221 आदि इसकी रोगरोधी किस्मे है|

रसायन- रोग के लक्ष्ण दीखते ही नाटीवो75 W.P. 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे| अथवा

ट्राईसाइकोलाजोल कवकनाशी 6 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए |
समय पर बोआई तथा संतुलित उर्वरको का उपयोग इस रोग को सिमित करने में मद्द करता है|
सावधानी के तौर पर रोगग्रस्त फसल अवशेषको कटाई के बाद जला देना चाहिए |

खैरा रोग :-

यह मिट्टी में जस्ते की कमी के कारण होने वाला एक दैहिक विकार (physiological disorder) है| इस रोग की खोज पंतनगर विश्वविद्यालयमें हुयी थी| तब से इस रोग को पुरे भारत के अन्य कई जगहों पर पाया गया | प्रभावित फसल की निचली पत्तियां पीली पड़ने से यह रोग प्रारंभ होता है जो बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के छिटकवा धब्बे उभरने लगते है | कल्ले कम निकलते है तथा पौधे की वृधि रुक जाती है |

खैरा रोग की रोकथाम कैसे करे :-

इसकी रोकथाम के लिए 25kg जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई या बओई से पहले खेत तैयार करते समय डालना चाहिए |
रोग लगने के बाद इसकी रोकथाम के लिए 5 kg. जिंक सल्फेट तथा 2.5 kg. चुना 600-700 लीटरपानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिडकावकरना चाहिए |
बीज शैय्या में खैरा रोग के लक्ष्ण दिखने पर इसी घोल का छिडकाव करना होता है |
रोपाई के समय 2% जिंक सल्फेट के घोल में पौधों की जड़ो को 1-2 मिनट डुबोकर रोपाई करने पर भी लाभ होता है



भूरा धब्बा रोग :-

इस रोग का रोग कारक का नाम हेल्मिन्थोस्पोरियम ओराइजी है| इस रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है, जो गोल या अंडाकारहोते है व पत्तियों की सतह पर सामान रूप से फैले रहते है | ये धब्बे प्राय: एक पीले रंग के वृत्त से गहरे होते है जो इस रोग की खास पहचान है | दानो के ऊपर भी इस रोग की वजह से छोटे – छोटेगहरे भूरे रंग या काले के धब्बे बनते है, हो इस रोग को बीजजनित रोग बनाते है | इस रोग की वजह से सबसे जादा नुकसान बीज के अंकुरण से समय सड़ने की वजह से होता है | पोटाश की कमी वाली मृदा में यह रोग ज्यादा होता है |

भूरा धब्बा रोग की रोकथाम :-

नमकके घोल द्वारा ठोस बीजो का चयन उसमे डूबाकर करते है, उसके बाद कवकनाशी से बीजोपचार करते है|
मैन्कोजेब 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए | अथवा
नाटीवो का 4ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कना लाभकारी होताहै|
रोग सहनशील व रोधी जातियों का चयन करना चाहिए जैसे- इंदिरा सुगन्धित-1, गोविन्द, सीता, I.R.-8 जैसे किस्मो का चुनाव करना चाहिए|
धान के खेत में पानी की कमी होने पर भी यह रोग लगता है |
जीवाणु जनित झुलसा रोग या पत्तियों का झुल्षा रोग (बैक्टेरियल लीफ ब्लाइट) :-
इस रोग का रोगकारक जीवाणु का नाम जेन्थोमोनस ओरीइजी है| इस रोग प्रारंभिक लक्षण रोपाई के 20-25 दिनोंबाद से ही पत्तियों पर दिखाई देने लगते है | वैसे तो यह रोग धानकी नर्सरीअवस्था सेलेकर परिपक्व होने तक कभी भी हो सकता है | इस रोग में लम्बे सूखे क्षत (dry lesions)पत्ती के उपरी भाग से शुरूहोकर पत्तियों के किनारे- किनारे मध्य भाग की तरफ बढ़ते है |सूखे पीले पत्तों के साथ-साथ सूखे, रख के रंग ले लम्बे- लम्बे चकते (lesions) भी दिखाई देते है | उसकेबाद पूरी पत्ती सुख जाती है | रोगग्रस्त पौधे कमजोर हो जाते है और उनमे कन्से कम निकलते है | दाने पूरी तरह नहीं भरते है व उपज कम हो जाती है |

जीवाणु जनित झुलसा रोग की रोकथाम कैसे करें:-

रोग के दिखाई देने पर कुछ समय के लिए खेतों से पानी को निकाल देना चाहिए |
रोगग्रस्तफसल की पैदावार का बीज के लियर उपयोग नहीं करना चाहिए |
रोग लगने पर नाइट्रोजनदेने वाली खाद का प्रयोग कम कर देना चाहिए 4-5 दिन के लिए टॉप ड्रेसिंग रोक देना चाहिए |
पोटाश 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए |
रोगरोधी अथवा सहनशील किस्मो का चयन करना चाहिए जैसे- सावा मासूरी, बमलेश्वरी, रतना, R.-20, I.R.-36, जयंती, राजेंद्र धान 202 आदि|
कोई रासायनिक उपचार इसके लिए प्रभावकारी नहीं है | फिर भी 75 ग्राम एग्रीमाईसीन 100 तथा 500 ग्राम कॉपर आक्सिक्लोराइडका 800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से तीन छिडकाव करें प्रथमछिडकाव बीमारी दिखने पर तुरंत करें, इसके बाद 10-12 दिन के अंतर में अन्य छिडकाव करना चाहिए| इससे कुछ से बहोत हद तक लाभ होता है |
धान की खेती कैसे करें

धान की कटाई-:

धान में बालियाँ निकलने के लगभग 1 माह बाद सभी किस्मे की धान पक जाती है, कटाई के लिए 80% बालियों में दाने पक जाने पर और उनमे नमी 20% जब हो वह उस समय धान कटाई के लिए उपयुक्त होता है, कटाई दरांती से जमीन कि सतह पर व ऊपर कि भूमियों में निचे कि सतह से 15-20 से.मी. ऊपर से करनी चाहिए मड़ाई : साधारणत हाथ से पीटकर कि जाती है शक्ति चालित थ्रेशर का उपयोग भी बड़े किसान मड़ाई के लिए करते है कम्बाइन के द्वारा मड़ाई और कटाई का कार्य एक साथ हो जाता है मड़ाई के बाद दानो कि सफाई कर लेते है सफाई के बाद धान के दानों को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए, भण्डारण से पूर्व दानों को 12% नमी तक सुखा लेते है .



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