मूंगफली फसल उत्पादन तकनीक
मूंगफली की उन्नत खेती
मूंगफली एक ऐसी तिलहनी फसलें जो दलहनी फसलों के समान भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है फसल चक्र में दूसरी फसलों के साथ बदल कर बोलने के लिए यह एक उत्तम खड़ी है यह प्रोटीन तथा विटामिन A एवंB से भरपूर होती है मूंगफली की विभिन्न किस्मों में तेल की मात्रा 43 से 52% तक होती है।
उन्नत प्रजातियां
आर. एस. बी. 87 (1978)-:
यह अर्द्ध विस्तारी 120 -130 दिन में पक कर तैयार होने वाली किस्म है जो भारी मिट्टी के लिए प्रयुक्त हैं इस के दानों का रंग गहरा गुलाबी उपज 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा तेल की मात्रा 50% होती है।
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ए.के 12-24 -:
टी.जी 37 ए (2002) -:
खेत की तैयारी-:
प्रीति ली दोमट व बाहरी मटियार दोमट भूमि में अलग-अलग प्रजाति की मूंगफली बोई जाती है एक बार मिट्टी पलटने वाली हल तथा बाद में देसी हल या हेरो से 2 से 3 खेत की जुताई करें ताकि मिट्टी में भुरभुरी हो जाए और इसके बाद पाटा चला कर बुवाई के लिए खेत तैयार करें।
भूमि उपचार-:
सफेद गिडार-: खेत की गहरी जुताई करके फसलों एवं के खरपतवार के अवशेष को नष्ट कर देना चाहिए।
,🔹 भूमि शोधन हेतु व्यूवरिया बेशियाना 1.0% 2.5 Kg प्रति हेक्टेयर कि दर से साडे 70 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर 8 से 23 दिन रखने के उपरांत प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए।
🔹 क्लोरो पायरीफॉस 20 % ए,सी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।
🔹 या फिर करबॉफ्युरान 3% सी जी 25 -30 kg प्रति हेक्टे।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन –
मिट्टी परीक्षण के आधार पर की गयी सिफारिशों के अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./है. नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए।
मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अतः गंधक पूर्ति का सस्ता स्त्रोत जिप्सम है। जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखरी तैयारी के समय प्रयोग करें। मूंगफली के लिये 5 टन गोबर की खाद के साथ 20:60:20 कि.ग्रा./हैक्टर नत्रजन,फॉस्फोरस व पोटाश के साथ 25 कि.ग्रा./हैक्टर जिंक सल्फेट का प्रयोग आधार खाद के रूप में प्रयोग करने से उपज में 22 प्रतिशत वृद्धि प्रक्षेत्र परीक्षण व अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में पायी गयी है।
समूह-1 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
यूरिया, | सु.फा. | म्यू.पोटाश |
43 | 375 | 33 |
बीज उपचार-:
कीटनाशी से उपचार -: सफेद रोग की रोकथाम के लिए बीज को क्लोरोफॉर्म से उपचारिित करें।
राइजोबियम से बीज उपचार-: राइजोबियम कल्चर से बीज उपचार हेतु राइजोबियम जीवाणु का प्रयोग किया जाता है
बीज व बुआई-:
सिंचाई व निराई गुड़ाई-:
पौध संरक्षण-:
दीमक :-
मोयला -:
मेलाथियान 5 % या मिथाइल पेराथियान 2% 25 kg प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। या मेलाथियान 50 ec 1.25 लीटर या मिथाइल पेराथियान 50 EC 750 मिलीलीटर या ऑक्सी मिथाइल डिमेटॉन्न ऑन 25 EC का 1 लीटर पानी में घोल बनाकर शुरू करें
क्राउन रोट -:
बचाव के लिए बीज का 3 ग्राम थायरा में कैप्टन दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें।
टिक्का रोग -:
मूंगफली में टिक करो फसल उगने के 40 दिन बाद दिखाई देता है रो के कारण पत्तियों पर मराठीले रंग के या गहरे भूरे धब्बे पड़ जाते हैं रोकथाम हेतु रोग दिखाई देते ही carbendazim आधा लीटर पानी के घोल में या मैनकोज़ेब 1kg प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
पीलिया रोग-:
जिन खेतों में मूंगफली की फसल को पीलिया रोग होता है वहां 3 साल में एक बार बुवाई से पूर्व 25 किलो गंधक या राम कशिश फेरस सल्फेट 0.5% या गंदगी अम्ल की 1% घोल का फसल में फूल आने से पहले एक बार तथा पूरे फूल आने के बाद दूसरी बार छिड़काव करके रोग का नियंत्रण किया जा सकता है।
खुदाई एवं भण्डारण –
जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और फलियों के अंदर का टेनिन का रंग उड़ जाये तथा बीज खोल रंगीन हो जाये तो खेत में हल्की सिंचाई कर खुदाई कर लें और पौधों से फलियाँ को अलग कर लें। मूंगफली खुदाई में श्रमह्रास कम करने के लिए यांत्रिक ग्राउण्डनट डिगर उपयोगी है।
मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखाना चाहिए। भंडारण के पूर्व पके हुये दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। अन्यथा नमीं अधिक होने पर मूंगफली में एस्परजिलस प्लेक्स फफूंद द्वारा एफलाटाक्सिन नामक विषैला तत्व पैदा हो जाता है जो मानव व पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यदि मूंगफली को तेज धूप में सुखाये तो अंकुरण क्षमता का हा्रस होता है।
अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिए –
- उपयुक्त नमीं होने पर ही मूंगफली को जमीन से निकाले।
- मूंगफली को भूमि से उखाड़ने के बाद इसके पौधों को उल्टा करके, छोटे-छोटे गट्ठर बनाकर फलियाँ हमेंशा धूप की तरफ होना चाहिए।
- पूर्णतया सूखी फलियों को हवादार स्थान में भण्डारित करना चाहिए। जहाँ पर नमीं ग्रहण नहीं कर सकें या फिर प्रत्येक बोरे में कैल्शियम क्लोराइड़ 300 ग्राम प्रति 40 कि.ग्रा. बीज की दर से भंडारण करें।
- भण्डारण के समय हानि पहुँचाने वाले कीट पतंगो से सुरक्षा रखें, जिससे भंण्डारण के समय फलियाँ खराब नहीं हो।
Source :किसान कल्याण तथा किसान विकास विभाग राजस्थान